Election news, रीवा लोकसभा चुनाव में भाजपा कांग्रेस और बसपा के बीच होगा रोचक मुकाबला जानिये कैसे बना रहे चुनावी समीकरण।
लगातार दो बार रीवा लोकसभा सीट जीतने के बाद लगभग सभी भाजपा नेता तीसरी बार भी जीत के लिए आश्वस्त नजर आ रहे थे लेकिन कांग्रेस के बाद बी एस पी के उम्मीदवारों की घोषणा होते और मौसम के बढ़ते तापमान से चेहरे सूखे सूखे नजर आ रहे हैं इसका कारण यह भी है कि जहां भी विधायक और बड़े नेता नुक्कड़ सभाएं करने जाते हैं वहां अपेक्षा के अनुरूप जनता नहीं पहुंचती कई जगह तो ऐसा हुआ है की कुर्सियां खाली रही और पंडाल लगे थे फिर भी जनता नहीं पहुंची हालांकि नेताओं ने खाली कुर्सियों की वजह को खेती किसानी की व्यवस्था बात कर मन के खालीपन को भरने का प्रयास किया है हालांकि यही हाल कांग्रेस और बसपा में भी देखा जा रहा है जहां जनसभा में अपेक्षा के अनुरूप जनता नहीं जुट रही है हालांकि कांग्रेस पार्टी की प्रत्याशी नीलम मिश्रा के पक्ष में कांग्रेस पार्टी के नेताओं कार्यकर्ताओं से ज्यादा उनसे जुड़े निजी लोग अधिक सक्रिय होते हैं जिस कारण से थोड़ी भीड़ जुटाना में कांग्रेस सफल हो रही है तीसरी बड़ी पार्टी बहुजन समाज पार्टी है जो चुनाव जीत पाए या ना जीत पाए लेकिन जब भीड़ जुटाना की बात आएगी तो बसपा कांग्रेस और भाजपा से कहीं पीछे नहीं रहने वाली है।
जनार्दन की गरीबी का रोना।
रीवा की भाजपा प्रत्याशी जनार्दन मिश्रा तीसरी बार लोकसभा चुनाव लड़े हैं और इस बार भी उनका पलड़ा कमजोर नहीं है इसकी वजह यह है कि केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकार रहते काफी विकास कार्य हुए हैं भाजपा की उम्मीदवार होने के चलते जनार्दन मिश्रा की पहले भी नैया पार होती थी इस बार भी उन्होंने यही उम्मीद कर रखी है कि भाजपा इस बार भी चुनावी वैतरणी पार करावेगी इसके साथ ही जनार्दन मिश्रा को लेकर जनता में इसलिए भी विरोध नहीं है कि उन्होंने किसी का नुकसान नहीं किया है और सांसद रहते अगर कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं किए हैं तो किसी के साथ गलत भी नहीं किए हैं उन्होंने विवादित या व्यक्तिगत मामलों में टांग भी नहीं अड़ाया है हालांकि पहली बार जब सांसद बने थे तो वह लखपति थे लेकिन अब करोड़पति हो चुके हैं फिर भी उनका गरीबी का रोना जारी है मंच से भी वह यह कहते हैं कि उनकी गरीबी को देखकर ही मोदी जी ने उनको टिकट दिया है।
अभय का झंडा डंडा और पंडा।
कहते हैं कि जिसकी लाठी उसकी भैंस ऐसा ही कुछ हाल है रीवा में कांग्रेस पार्टी का जहां लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए दावेदार तो बहुत थे लेकिन कांग्रेस ने टिकट उसी को दिया जिसके पास विपरीत परिस्थितियों में चुनाव लड़ने की कूबत थी और झंडा, डंडा, पंडा, वाले गुण अभय मिश्रा में ही थे,मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के लिए रीवा जिले में उन्होंने एकमात्र जीत का झंडा गाड़ा है विपक्ष पर जमकर हमला बोलते हैं इसलिए उनका डंडा भी मजबूत है इसके साथ ही राजनीति किस दिशा में ले जाना है और विपरीत परिस्थितियों को अपने अनुकूल कैसे बनाना है इन मामलों में राजनीतिक पंडा भी हैं कांग्रेस पार्टी से रीवा लोकसभा प्रत्याशी अभय मिश्रा की पत्नी नीलम मिश्रा हैं जो सेमरिया से विधायक रही हैं इस चुनाव में एक तरफ जहां अभय मिश्रा मोर्चा संभाले हुए हैं तो वहीं दूसरी तरफ प्रत्याशी नीलम मिश्रा खुद ताबक तोड़ जनसंपर्क कर रही है इस चुनाव में भले ही कांग्रेस पार्टी के लोग अधिक सक्रिय न दिखाई दें लेकिन अभय मिश्रा की खुद की टीम कांग्रेस की बंजर जमीन में हरियाली लाने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रही है आर्थिक रूप से सभी प्रत्याशियों पर भारी अभय मिश्रा की बात रही तो वह खुद करोड़पति हैं और उनकी पत्नी भी करोड़पति हैं बड़े ठेकेदारों में अभय मिश्रा की गिनती होती है।
कांग्रेस भाजपा के बीच चिंघाड़ रहा हाथी।
रीवा लोकसभा क्षेत्र में तीसरे सबसे मजबूत नेताओं में बहुजन समाज पार्टी के लोकसभा प्रत्याशी अभिषेक पटेल है भाजपा और कांग्रेस पार्टी से ब्राह्मण उम्मीदवार हैं तो वहीं बहुजन समाज पार्टी अभिषेक पटेल ओबीसी वर्ग के नेता है और करोड़पति उम्मीदवारों की लिस्ट में वह भी है रीवा जिला कभी-कभी चुनाव में जातिगत समीकरणों पर भी बड़े उलट फेर कर देता है 1991 के लोकसभा चुनाव में ऐसा पहली बार देखने को मिला था जब कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता श्रीनिवास तिवारी भाजपा के वरिष्ठ अधिवक्ता कौशल प्रसाद मिश्रा और बहुजन समाज पार्टी से भीम सिंह पटेल का लोकसभा चुनाव में आमना सामना हुआ था दो ब्राह्मणों के बीच मतों का विभाजन हुआ और बहुजन समाज पार्टी के भीम सिंह पटेल पहली बार बहुजन समाज पार्टी का खाता खोलने में कामयाब हुए उस चुनाव में बताया जाता है कि लोग जातिगत विचारधारा से प्रभावित थे इसी कारण कांग्रेस और भाजपा के दोनों दिग्गज नेता त्रिकोणीय मुकाबले में बहुजन समाज पार्टी से पराजित हुए थे वर्तमान लोकसभा प्रत्याशी अभिषेक पटेल भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि 1991 जैसी लोकसभा चुनाव में स्थिति बनेगी हालांकि दो बार और बहुजन समाज पार्टी के सांसद निर्वाचित हुए लेकिन अब बहुजन समाज पार्टी का जनाधार उस तरह से नहीं रहा जो पहले हुआ करता था।